![]() |
पुरी रथ यात्रा 2025: भक्ति, संस्कृति और उत्सव का संगम |
हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी शहर में एक ऐसा उत्सव शुरू होता है जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में अपनी भव्यता और आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध है—जगन्नाथ रथ यात्रा। यह उत्सव भक्ति, संस्कृति, और सामाजिक एकता का अनूठा संगम है जो लाखों श्रद्धालुओं को एक साथ लाता है। पुरी की रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतीक भी है। आइए इस लेख में हम 2025 की रथ यात्रा की ताजा जानकारी, इसके इतिहास, महत्व, और सांस्कृतिक पहलुओं को विस्तार से जानते हैं।
जगन्नाथ रथ
यात्रा:
एक
परिचय
पुरी,
जिसे पुरुषोत्तम पुरी या श्रीक्षेत्र
के नाम से भी
जाना जाता है भगवान
जगन्नाथ की पवित्र भूमि
है। यहाँ का जगन्नाथ
मंदिर चार धाम तीर्थयात्राओं
(बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) में से एक
है और हिंदू धर्म
में इसका विशेष महत्व
है। रथ यात्रा भगवान
जगन्नाथ, उनके बड़े भाई
बलभद्र, और बहन सुभद्रा
को समर्पित है जिन्हें विशाल
लकड़ी के रथों पर
बड़ा डंडा (पुरी की मुख्य
सड़क) से गुंडिचा मंदिर
तक ले जाया जाता
है। यह यात्रा आषाढ़
शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर
दशमी तिथि तक चलती
है और इस बार
2025 में यह यात्रा 27 जून
से शुरू होगी।
![]() |
जगन्नाथ रथ यात्रा |
रथ यात्रा 2025: ताजा
अपडेट
2025 की
रथ यात्रा की तैयारियाँ पुरी
में जोर-शोर से
चल रही हैं। मंदिर
प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन
ने इस भव्य आयोजन
को सफल बनाने के
लिए कमर कस ली
है। 27 जून 2025 को शुरू होने
वाली यह यात्रा 7 जुलाई
2025 तक चलेगी, जिसमें बहुड़ा यात्रा (वापसी यात्रा) भी शामिल है।
इस बार, रथ निर्माण
का कार्य श्री नगर की
अस्थायी कार्यशाला में तेजी से
चल रहा है, जहाँ
कुशल कारीगर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा के
लिए तीन विशाल रथ
तैयार कर रहे हैं।
प्रत्येक रथ की संरचना
में 36 पहियों और 14 नाहका चौपटा का उपयोग हो
रहा है, जो इसकी
भव्यता को और बढ़ाता
है।
पिछले
साल (2024) की रथ यात्रा
दो दिनों तक चली थी,
जो 53 साल बाद एक
विशेष घटना थी। इस
बार सामान्य रूप से एक
दिन की यात्रा की
उम्मीद है, लेकिन भक्तों
की भारी भीड़ को
देखते हुए सुरक्षा और
प्रबंधन के लिए व्यापक
इंतजाम किए जा रहे
हैं। ओडिशा पुलिस ने 180 पलटन और 1,000 अधिकारियों
को तैनात करने की योजना
बनाई है, साथ ही
पूरे शहर को सीसीटीवी
की निगरानी में रखा जाएगा।
रथ यात्रा का
ऐतिहासिक
महत्व
जगन्नाथ
रथ यात्रा का इतिहास सदियों
पुराना है। इतिहासकारों का
मानना है कि इसकी
शुरुआत 12वीं सदी में
हुई, हालाँकि पुरी के साधु-संत इसे इससे
भी प्राचीन मानते हैं। एक लोककथा
के अनुसार, रानी गुंडिचा ने
राजा इंद्रद्युम्न से रथ यात्रा
शुरू करने का अनुरोध
किया था ताकि पापी
और जिन्हें मंदिर में प्रवेश की
अनुमति नहीं थी, वे
भी भगवान के दर्शन कर
मोक्ष प्राप्त कर सकें।
स्कंद
पुराण में कहा गया
है कि जो व्यक्ति
रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ
के नाम का कीर्तन
करता हुआ गुंडिचा मंदिर
तक जाता है, वह
पुनर्जन्म से मुक्त हो
जाता है। यह यात्रा
भगवान जगन्नाथ की सभी मनुष्यों
को अपनी प्रजा मानने
की भावना को दर्शाती है,
जैसा कि उनके उद्गार
हैं: "सब मनिसा मोर
परजा" (सब मनुष्य मेरी
प्रजा है)।
रथ यात्रा की
धार्मिक
और
सांस्कृतिक
महत्ता
रथ यात्रा का धार्मिक महत्व
असीम है। यह माना
जाता है कि रथ
को खींचने से भक्तों के
पाप नष्ट होते हैं
और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती
है। यह यात्रा भगवान
जगन्नाथ को भगवान विष्णु
या कृष्ण के अवतार के
रूप में पूजने की
परंपरा को मजबूत करती
है। साथ ही, यह
उत्सव धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है,
क्योंकि यहाँ विभिन्न धर्मों
और मतों के लोग
एक साथ शामिल होते
हैं।
सांस्कृतिक
दृष्टि से, रथ यात्रा
ओडिशा की समृद्ध परंपराओं
और कला को दर्शाती
है। रथों का निर्माण
और उनकी सजावट एक
कला का उत्कृष्ट नमूना
है। कुशल कारीगर (रूपकार
सेवक) रथों पर पक्षियों,
पशुओं, और पुष्पों की
जटिल आकृतियाँ बनाते हैं। प्रत्येक रथ
की अपनी विशेषता है:
·
नंदीघोष
(जगन्नाथ का रथ): 16 पहिए,
13.5 मीटर ऊँचा, पीले कपड़े से
सजा।
·
तालध्वज
(बलभद्र का रथ): 14 पहिए,
नीले और हरे रंग
में।
·
दर्पदलन
(सुभद्रा का रथ): 12 पहिए,
लाल और काले रंग
में।
रथ यात्रा की
परंपराएँ
और
अनुष्ठान
रथ यात्रा कई अनुष्ठानों से
भरी होती है, जिनमें
से छेरा पहरा सबसे
महत्वपूर्ण है। इस अनुष्ठान
में पुरी के गजपति
राजा स्वयं एक स्वीपर की
पोशाक पहनकर रथों और रास्ते
को सोने की झाड़ू
से साफ करते हैं,
जो उनकी भक्ति और
विनम्रता को दर्शाता है।
यात्रा
के दौरान भक्त ढोल, नगाड़ों,
और शंखनाद के बीच रथों
को खींचते हैं। यह दृश्य
भक्ति और उत्साह का
अनूठा संगम होता है।
गुंडिचा मंदिर में भगवान सात
दिनों तक अपनी "मौसी"
के घर रहते हैं,
जहाँ उनकी विशेष पूजा
और भोग लगाया जाता
है। मान्यता है कि इस
दौरान भगवान स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लेते
हैं, जिससे उनकी तबीयत खराब
हो जाती है, और
फिर पथ्य भोग से
वे ठीक होते हैं।
2024 की
रथ
यात्रा:
एक
नजर
पिछले
साल की रथ यात्रा
में एक दुखद घटना
हुई थी, जब भगदड़
के कारण एक व्यक्ति
की मृत्यु हो गई थी।
इस बार प्रशासन ने
ऐसी घटनाओं से बचने के
लिए और कड़े इंतजाम
किए हैं। 2024 में रथ यात्रा
दो दिनों तक चली थी,
जो 1971 के बाद पहली
बार हुआ था। इस
बार भक्तों को गर्मी से
राहत देने के लिए
पानी की फुहारों का
भी इंतजाम किया गया था।
रथ यात्रा में
शामिल
होने
के
लिए
टिप्स
·
यात्रा की
योजना:
पुरी पहुँचने के लिए दिल्ली,
कोलकाता, या भुवनेश्वर से
ट्रेन या उड़ान का
उपयोग करें। मंदिर में दर्शन के
लिए कोई टिकट की
आवश्यकता नहीं है।
·
ठहरने की
व्यवस्था:
पुरी में कई होटल
और रिसॉर्ट उपलब्ध हैं। समुद्र तट
के पास ठहरना एक
शानदार अनुभव हो सकता है।
·
सुरक्षा: भीड़ को देखते
हुए अपने सामान का
ध्यान रखें और पुलिस
के निर्देशों का पालन करें।
·
आसपास के
दर्शनीय
स्थल:
रथ यात्रा के बाद कोणार्क
सूर्य मंदिर और रामचंडी बीच
घूमने की योजना बनाएँ।
निष्कर्ष
पुरी
की रथ यात्रा केवल
एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि
यह भक्ति, संस्कृति, और एकता का
प्रतीक है। यह यात्रा
हमें यह सिखाती है
कि भगवान सभी के लिए
समान हैं और उनकी
कृपा हर उस भक्त
पर बरसती है जो सच्चे
मन से उनकी शरण
में आता है। 2025 की
रथ यात्रा में शामिल होकर
आप इस आध्यात्मिक और
सांस्कृतिक उत्सव का हिस्सा बन
सकते हैं। तो, इस
साल पुरी की यात्रा
की योजना बनाएँ और भगवान जगन्नाथ
के दर्शन का पुण्य लाभ
लें।
Hi Please, Do not Spam in Comments