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| छठ पूजा: बिहार, झारखंड और पूर्वांचल की सांस्कृतिक धरोहर | 
जैसे ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की पहली तिथि सूर्योदय के साथ उगती है पूर्वी भारत की धरती पर एक अलौकिक आभा छा जाती है। आज 25 अक्टूबर 2025 को छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। नहाय-खाय के पावन अवसर पर लाखों महिलाएं सूर्य देव और छठी मां की आराधना में डूब गई हैं। यह मात्र एक त्योहार नहीं बल्कि बिहार, झारखंड और पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) की आत्मा का प्रतीक है – एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर जो पीढ़ियों से चली आ रही है जो प्रकृति पूजा, पारिवारिक एकता और स्त्री शक्ति की गाथा बुनती है। इस वर्ष छठ पूजा 25 से 28 अक्टूबर तक मनाई जा रही है जिसमें नहाय-खाय (25 अक्टूबर), खरना (26 अक्टूबर), संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) और ऊषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) के चार दिवस शामिल हैं। लेकिन यह पर्व केवल रीति-रिवाजों का संग्रह नहीं; यह एक जीवंत कथा है जो आधुनिकता के दौर में भी अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है। आइए इस ब्लॉग में हम गहराई से खंगालें इस धरोहर की परतें, नवीनतम आंकड़ों और अनोखे पहलुओं के साथ।
छठ पूजा का
ऐतिहासिक
और
सांस्कृतिक
महत्व:
सूर्योपासना
की
प्राचीन
जड़ें
छठ पूजा की जड़ें
वैदिक काल तक जाती
हैं जहां सूर्य को
जीवन का स्रोत माना
जाता था। रामायण की
कथा के अनुसार जब
भगवान राम वनवास से
लौटे तो उन्होंने छठ
व्रत रखा ताकि छठी
मां की कृपा से
संतान सुख प्राप्त हो।
लेकिन पूर्वांचल की लोककथाओं में
यह सीता मां से
जुड़ी हुई है – जब
सीता मिथिला (आधुनिक बिहार) लौटीं, तो उन्होंने गंगा-यमुना के तट पर
सूर्य देव को अर्घ्य
चढ़ाया। यह पर्व बिहार,
झारखंड और पूर्वी उत्तर
प्रदेश (पूर्वांचल) की साझा सांस्कृतिक
विरासत है जहां यह
न केवल धार्मिक अनुष्ठान
है बल्कि सामाजिक एकजुटता का प्रतीक भी।
बिहार
में छठ को 'महापर्व'
कहा जाता है जो
राज्य की पहचान बन
चुका है। यहां के
गंगा घाटों पर लाखों लोग
इकट्ठा होते हैं, जो
प्राचीन आर्यन सूर्य पूजा की याद
दिलाते हैं। झारखंड में
यह आदिवासी संस्कृति से जुड़ गया
है, जहां संथाल और
मुंडा समुदाय इसे प्रकृति देवता
के सम्मान के रूप में
मनाते हैं। पूर्वांचल खासकर
वाराणसी, चंदौली और गाजीपुर जैसे
जिलों में यह पर्व
यमुना-गंगा के संगम
पर और भी जीवंत
हो उठता है। यह
धरोहर न केवल हिंदू
परंपरा की है बल्कि
समावेशी भी – मुस्लिम और
ईसाई समुदाय भी इसमें भाग
लेते हैं, जो क्षेत्रीय
सद्भाव की मिसाल है।
छठ के अनुष्ठान:
शुद्धता,
समर्पण
और
सामूहिक
आस्था
छठ पूजा के चार
दिवस एक-दूसरे से
गूंजे हुए हैं, प्रत्येक
का अपना गहन महत्व।
- · नहाय-खाय (25 अक्टूबर 2025): पर्व की शुरुआत शुद्ध स्नान से होती है। व्रती महिलाएं (जिन्हें 'छठी' कहा जाता है) पवित्र नदी या तालाब में स्नान करती हैं, फिर सात्विक भोजन – चावल, दाल, कद्दू और गुड़ – ग्रहण करती हैं। यह शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धिकरण का प्रतीक है। इस वर्ष, पटना में प्रशासन ने घाटों पर विशेष सफाई अभियान चलाया है, ताकि पर्यावरण संरक्षण भी सुनिश्चित हो।
- · खरना (26 अक्टूबर 2025): निर्जला व्रत की शुरुआत। शाम को गुड़ की रोटी और दूध का प्रसाद बनाया जाता है, जो परिवार के साथ साझा किया जाता है। यह दिन समर्पण का है, जहां व्रती 36 घंटे तक जल भी नहीं ग्रहण करतीं। झारखंड के रांची में इस वर्ष 'ग्रीन छठ' पहल के तहत प्लास्टिक-मुक्त प्रसाद वितरण हो रहा है।
- · संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025): सूर्यास्त के समय नदी किनारे ठेकुआ, फल और जल का अर्घ्य। यह जीवन की ऊर्जा का आह्वान है। पूर्वांचल के वाराणसी घाट पर लाखों दीप जलेंगे, जो UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल होने की दावेदारी मजबूत कर रहे हैं।
- · ऊषा अर्घ्य (28 अक्टूबर 2025): सूर्योदय पर अंतिम अर्घ्य, व्रत पारण। यह पर्व की पराकाष्ठा है, जहां प्रार्थना है स्वास्थ्य, संतान और समृद्धि की।
ये अनुष्ठान न केवल धार्मिक
हैं बल्कि पर्यावरणीय भी – जल स्रोतों
की सफाई और मौसमी
फलों का उपयोग प्रकृति
संतुलन को दर्शाता है।
नवीनतम आंकड़े:
छठ
की
व्यापकता
और
आर्थिक
प्रभाव
2025 में
छठ पूजा की भव्यता
और भी बढ़ गई
है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया
ट्रेडर्स (CAIT) के अनुसार इस
वर्ष पूरे भारत में
लगभग 15 करोड़ लोग भाग ले
रहे हैं जिसमें महिलाओं
की संख्या सबसे अधिक है।
2024 में यह व्यापारिक कारोबार
12,000 करोड़ रुपये का था लेकिन
2025 में यह 38,000 करोड़ तक पहुंचने का
अनुमान है – ठेकुआ, फल,
बांस के डोरी और
सजावट सामग्री से। बिहार सरकार
ने 5,000 से अधिक घाटों
पर सुरक्षा और सुविधाएं सुनिश्चित
की हैं जबकि झारखंड
में डिजिटल लाइव स्ट्रीमिंग के
माध्यम से दूरस्थ गांवों
को जोड़ा जा रहा है।
पूर्वांचल में उत्तर प्रदेश
सरकार ने 'छठ महोत्सव'
के रूप में इसे
पर्यटन का हिस्सा बनाया
है, जिससे 50 लाख पर्यटक आने
की उम्मीद है।
पलायन
का दौर होने पर
भी दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में
बिहारी-झारखंडी समुदाय घाट बनाकर मनाते
हैं। वैश्विक स्तर पर, अमेरिका
के वर्जीनिया और कनाडा में
'ओवरसीज छठ' आयोजित हो
रहे हैं, जो प्रवासी
भारतीयों की सांस्कृतिक जड़ों
को मजबूत कर रहे हैं।
अनोखे पहलू:
आधुनिकता
में
छठ
की
नई
धुन
छठ पूजा पारंपरिक है
लेकिन अनोखे रूप से विकसित
हो रही है। महिलाओं
की भूमिका यहां केंद्रीय है
– वे व्रत रखती हैं,
प्रसाद बनाती हैं, जो स्त्री
सशक्तिकरण का प्रतीक है।
इस वर्ष बिहार में
'डिजिटल छठ' ऐप लॉन्च
हुआ है, जो अर्घ्य
समय, रेसिपी और वर्चुअल घाट
प्रदान करता है। पर्यावरण
चेतना के तहत झारखंड
में सौर ऊर्जा से
चलने वाले लाइट्स का
उपयोग हो रहा है,
जो 'ग्रीन छठ' को बढ़ावा
दे रहा है। पूर्वांचल
में, युवा कलाकार छठ
पर आधारित स्ट्रीट आर्ट और शॉर्ट
फिल्में बना रहे हैं,
जो सोशल मीडिया पर
वायरल हो रही हैं।
एक अनोखी कहानी है रांची की
'छठ रन' – जहां युवा दौड़कर
घाट पहुंचते हैं, स्वास्थ्य और
आस्था का मिश्रण। वैश्विक
पटल पर, UNESCO ने 2024 में इसे 'इंटैंजिबल
कल्चरल हेरिटेज' के लिए नामित
किया, जो पूर्वांचल की
सॉफ्ट पावर को मजबूत
कर रहा है।
निष्कर्ष: छठ
– एक
जीवंत
धरोहर
छठ पूजा बिहार, झारखंड
और पूर्वांचल की सांस्कृतिक धरोहर
का जीवंत प्रमाण है – जो सूर्य
की किरणों की तरह अटूट
ऊर्जा देती है। यह
पर्व हमें सिखाता है
कि आस्था पर्यावरण, समुदाय और परंपरा के
संतुलन में ही फलित
होती है। जैसे ही
28 अक्टूबर को ऊषा अर्घ्य
के साथ पर्व समाप्त
होगा, नई आशाओं की
किरणें उमंगेंगी। यदि आप इस
धरोहर का हिस्सा हैं,
तो अपने अनुभव साझा
करें। 
                                             जय छठी मां! जय
सूर्य
देव!
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