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79वां स्वतंत्रता दिवस: स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक |
15 अगस्त 2025 को भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। यह दिन केवल आजादी का उत्सव नहीं है बल्कि उन असंख्य बलिदानों की याद भी है जिन्होंने हमें यह आजादी दिलाई। जब हम स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं तो हमारे दिमाग में गांधी, नेहरू, भगत सिंह जैसे महान नेताओं के नाम आते हैं। लेकिन आज इस खास मौके पर मैं उन गुमनाम नायकों की बात करना चाहता हूँ, जिन्होंने चुपके से बिना किसी शोहरत की चाह के देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम
की
अनकही
कहानियाँ
भारत
की आजादी की लड़ाई सिर्फ
किताबों में दर्ज कुछ
बड़े नामों की कहानी नहीं
है। यह उन हजारों-लाखों लोगों की कहानी है,
जिन्होंने अपने छोटे-छोटे
योगदानों से इस आंदोलन
को मजबूती दी। 1857 से 1947 तक चले इस
लंबे संघर्ष में कई ऐसे
नायक थे, जिनके नाम
इतिहास के पन्नों में
शायद ही कहीं दर्ज
हों। लेकिन उनकी वीरता और
बलिदान आज भी हमें
प्रेरित करते हैं।
उधम सिंह: जलियांवाला
बाग
का
बदला
13 अप्रैल
1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार ने
पूरे देश को हिलाकर
रख दिया था। इस
भयानक घटना के लिए
जिम्मेदार माइकल ओ’डायर को सजा
देने का बीड़ा उठाया
सरदार उधम सिंह ने।
21 साल तक उन्होंने अपने
दिल में इस बदले
की आग को जिंदा
रखा और 1940 में लंदन के
कैक्सटोन हॉल में ओ’डायर
को गोली मार दी।
उधम सिंह को फांसी
तो मिली, लेकिन उन्होंने दिखा दिया कि
एक सच्चा देशभक्त अपने देश के
लिए कितना कुछ कर सकता
है।
बेगम हजरत
महल:
अवध
की
शेरनी
1857 के
विद्रोह में बेगम हजरत
महल ने अवध में
अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा
संभाला। उन्होंने न केवल विद्रोह
का नेतृत्व किया बल्कि एक
महिला सैनिक दस्ता बनाकर अंग्रेजों को कड़ी टक्कर
दी। चिनहट, फैजाबाद और सुल्तानपुर में
उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के
झंडे उतार फेंके गए।
विद्रोह के दबने के
बाद भी वह हारी
नहीं और नेपाल में
रहकर आजादी की जंग को
प्रेरित करती रहीं।
तिरुपुर कुमारन:
झंडे
का
रक्षक
तमिलनाडु
के तिरुपुर में जन्मे कुमारन
को लोग ‘कोडी कथा
कुमारन’ के
नाम से जानते हैं,
जिसका मतलब है ‘झंडे
का रक्षक’। 1932 में एक विरोध
मार्च के दौरान जब
अंग्रेजों ने उन पर
हमला किया तब भी
उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को नहीं
छोड़ा। गंभीर रूप से घायल
होने के बावजूद, उन्होंने
झंडे को जमीन पर
नहीं गिरने दिया। उनकी यह वीरता
आज भी हर भारतीय
के लिए प्रेरणा है।
मातंगिनी हाजरा:
वंदे
मातरम
की
पुकार
71 साल
की उम्र में जब
ज्यादातर लोग आराम की
जिंदगी जीने की सोचते
हैं, मातंगिनी हाजरा भारत छोड़ो आंदोलन
में तिरंगा लेकर सड़कों पर
उतरीं। 1942 में तामलुक पुलिस
स्टेशन पर कब्जा करने
के लिए निकले जुलूस
में वह आगे-आगे
थीं। अंग्रेजों ने उन पर
गोलियाँ चलाईं, लेकिन वह ‘वंदे मातरम’ का
नारा लगाती रहीं। तीन गोलियाँ लगने
के बाद भी वह
झंडा थामे रही थीं।
उनकी यह कहानी आज
भी रोंगटे खड़े कर देती
है।
भीमा नायक:
निमाड़
का
रॉबिनहुड
मध्य
प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र
में भीमा नायक ने
1857 में आदिवासियों को एकजुट कर
अंग्रेजों के खिलाफ जंग
छेड़ी। उनकी 3000 आदिवासियों की सेना ने
जंगलों में अंग्रेजों को
खदेड़ दिया। तात्या टोपे ने उन्हें
‘निमाड़ का रॉबिनहुड’ कहा। उनके बलिदान
ने आदिवासी समुदायों में आजादी की
चिंगारी को और भड़काया।
79वें
स्वतंत्रता
दिवस
पर
इन
नायकों
को
याद
करना
2025 में
जब हम 79वां स्वतंत्रता
दिवस मना रहे हैं
यह जरूरी है कि हम
इन गुमनाम नायकों को याद करें।
इस साल की थीम
“स्वतंत्रता दिवस: भारत के लिए
गौरवशाली विरासत” हमें अपनी सांस्कृतिक
और ऐतिहासिक धरोहर को संजोने की
प्रेरणा देती है। इन
नायकों की कहानियाँ हमें
बताती हैं कि आजादी
सिर्फ कुछ बड़े नामों
की देन नहीं थी,
बल्कि यह हर उस
व्यक्ति की मेहनत और
बलिदान का नतीजा थी,
जिन्होंने अपने देश के
लिए कुछ करने की
ठानी।
आज हम क्या
कर
सकते
हैं?
इन गुमनाम नायकों की कहानियाँ हमें
न केवल गर्व महसूस
कराती हैं, बल्कि हमें
यह भी सिखाती हैं
कि देश के लिए
कुछ करने की भावना
कभी कम नहीं होनी
चाहिए। आज हम इन
नायकों को सम्मान दे
सकते हैं:
- देशभक्ति को जीवित रखें: छोटे-छोटे कार्यों जैसे पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समानता और शिक्षा के जरिए देश के लिए योगदान दें।
अंत में
79वां
स्वतंत्रता दिवस हमें एक
मौका देता है कि
हम उन गुमनाम नायकों
को याद करें, जिनके
बिना हमारी आजादी की कहानी अधूरी
होती। उधम सिंह, बेगम
हजरत महल, मातंगिनी हाजरा,
तिरुपुर कुमारन, और भीमा नायक
जैसे अनगिनत वीरों की कहानियाँ हमें
बताती हैं कि साहस
और समर्पण की कोई सीमा
नहीं होती। आइए, इस स्वतंत्रता
दिवस पर हम संकल्प
लें कि हम न
केवल इन नायकों को
याद रखेंगे, बल्कि उनके सपनों के
भारत को साकार करने
में भी अपना योगदान
देंगे।
जय हिंद!
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